ग़रीबी दूर करने में खेल संस्थान पर कर लगाने से मिलेगी काफ़ी मदद


ग़रीबी दूर करने में खेल संस्थान पर कर लगाने से मिलेगी काफ़ी मदद-विशेष रूप से बीसीसीआई पर
    भारत आज़ादी के 75 से अधिक वर्षों बाद भी ग़रीबी जैसी गंभीर समस्या से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सका है, सरकारें समय-समय पर कल्याणकारी योजनाएँ चलाती रही हैं - प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, मनरेगा, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि इत्यादि - परंतु संसाधनों की सीमाएँ और बढ़ती जनसंख्या इन योजनाओं की प्रभावशीलता को सीमित करती हैं, ऐसे में यह आवश्यक है कि सरकार नए राजस्व स्रोत खोजे ताकि समाज के गरीब तबकों को अधिक सहायता मिल सके, इसी परिप्रेक्ष्य में, खेल संस्थानों, विशेषकर भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड जैसे अत्यधिक समृद्ध संगठनों पर कर लगाने का विचार अत्यंत सार्थक और न्याय संगत प्रतीत होता है ।

@बीसीसीआई की आर्थिक स्थिति:-
    बीसीसीआई दुनिया के सबसे अमीर खेल संगठनों में से एक है, इसकी वार्षिक आय हज़ारों करोड़ रुपये में है, इंडियन प्रीमियर लीग के मीडिया अधिकार, विज्ञापन, टिकट बिक्री और प्रायोजकों से अरबों का राजस्व प्राप्त होता है, 2024 के बाद से बीसीसीआई की कुल संपत्ति ₹20,000 करोड़ से अधिक आँकी गई है, इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति रखने के बावजूद, बीसीसीआई  एक “नॉन-प्रॉफिट सोसाइटी” के रूप में पंजीकृत है, जिस कारण इसे लंबे समय तक कर छूट मिलती रही जबकि इसके वास्तविक कार्य और राजस्व इसे एक व्यावसायिक संस्था बनाते हैं।

@कर लगाने की आवश्यकता
     सामाजिक समानता का सिद्धांत ' जब आम नागरिक अपने सीमित आय पर कर देता है तो अरबों कमाने वाले खेल संस्थान का करमुक्त रहना सामाजिक असमानता को बढ़ाता है ।
    #राजस्व सृजन का नया स्रोत : केवल बीसीसीआई पर 30% कर लगाने से ही सालाना लगभग ₹5,000 से लेकर ₹6,000 करोड़ का राजस्व लगता है । 
  
  @खेल से जुड़े धन का सार्वजनिक कल्याण में उपयोग : यह धन ग्रामीण खेल अकादमियों, प्रतिभाशाली गरीब खिलाड़ियों के प्रशिक्षण, और पिछड़े इलाक़ों में खेल सुविधाएँ विकसित करने में लगाया जा सकता है।
  @कॉर्पोरेट नैतिकता और पारदर्शिता:
जब बड़े कॉर्पोरेट घराने सीएसआर (कॉर्पोरेट की सामाजिक उत्तरदायित्व) के तहत समाज को योगदान देते हैं, तो बीसीसीआई जैसी संस्था को भी खेल की सामाजिक उत्तरदायित्व निभानी चाहिए।

@कानूनी और नीति संबंधी सुझाव
    स्पोर्ट्स टैक्स एक्ट जैसी नई नीति लाई जा सकती है जिसके तहत कोई भी खेल संस्था जिसकी वार्षिक आय ₹500 करोड़ से अधिक हो, उस पर 20–30% विशेष सामाजिक कर (सामाजिक कल्याण उपकर) लगाया जाए, यह कर सीधे “राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन कोष” राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन कोष में जाए,
इसके साथ ही खेल संस्थानों को अपनी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से जारी करना अनिवार्य हो।

@संभावित लाभ : 
    भारत के 20 करोड़ से अधिक गरीब नागरिकों के लिए भोजन, आवास और स्वास्थ्य योजनाओं में अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध होंगे ।
   ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों के विकास से रोज़गार के नए अवसर बनेंगे, इससे खेल और समाज के बीच संतुलन स्थापित होगा — जहाँ खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का माध्यम बनेगा ।
 @संभावित विरोध और समाधान विरोध : बीसीसीआई जैसी संस्थाएँ कह सकती हैं कि वे पहले से ही खेल के विकास में निवेश करती हैं।
 @समाधान: निवेश के प्रमाण सार्वजनिक हों, और केवल वास्तविक सामाजिक योगदान को ही कर रियायत के योग्य माना जाए।

@निष्कर्ष :-
   #भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ करोड़ों लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं, वहाँ अमीर खेल संस्थानों को कर छूट देना आर्थिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से अनुचित है।
  #बीसीसीआई और अन्य बड़े खेल संगठनों पर सामाजिक कल्याण कर लगाने से न केवल सरकारी राजस्व बढ़ेगा बल्कि “खेल से समाज सेवा” की भावना भी सशक्त होगी, इससे भारत में गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।

साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ।

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