पंडित राम प्रसाद बिस्मिल : भारत के युवाओं के लिए सच्चा आदर्श
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल : भारत के युवाओं के लिए सच्चा आदर्श
जब राष्ट्र अपने मूल्यों से भटकने लगे, जब युवाओं की ऊर्जा दिशाहीन होने लगे, तब इतिहास के पन्नों से ऐसे व्यक्तित्वों को स्मरण करना आवश्यक हो जाता है जिन्होंने अपने विचार, आचरण और बलिदान से राष्ट्र की आत्मा को दिशा दी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ऐसे ही महान क्रांतिकारी थे, जिन्हें आज के भारत के युवाओं को अपना आदर्श बनाना चाहिए ।
बिस्मिल केवल ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध हथियार उठाने वाले क्रांतिकारी नहीं थे बल्कि वे विचारों के क्रांतिकारी थे, उनका जीवन त्याग, अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम था, 11 जून 1897 को जन्मे बिस्मिल ने बहुत कम आयु में यह समझ लिया था कि गुलामी केवल राजनीतिक नहीं होती, बल्कि मानसिक और आर्थिक भी होती है, यही कारण था कि उनका संघर्ष केवल विदेशी शासन के विरुद्ध नहीं, बल्कि भय, अन्याय और कायरता के विरुद्ध भी था ।
आज के युवाओं के लिए बिस्मिल का जीवन इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि उन्होंने आराम, पद, प्रतिष्ठा और निजी सुख को ठुकराकर देश को सर्वोपरि रखा, काकोरी कांड केवल एक रेल-डकैती नहीं थी, बल्कि वह ब्रिटिश सत्ता की आर्थिक नींव को चुनौती देने का साहसिक प्रतीक था, उस घटना के पीछे बिस्मिल की यह सोच थी कि गुलाम राष्ट्र को स्वतंत्र करने के लिए संसाधन और साहस दोनों आवश्यक हैं, बिस्मिल की विशेषता यह थी कि वे जितने निर्भीक क्रांतिकारी थे, उतने ही संवेदनशील कवि भी थे, उनकी रचनाएँ—“सरफ़रोशी की तमन्ना” जैसी पंक्तियाँ—आज भी युवाओं के रक्त में जोश भर देती हैं, वे बताते हैं कि देशभक्ति केवल नारे लगाने से नहीं, बल्कि बलिदान और चरित्र से सिद्ध होती है ।
आज का युवा सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में उलझा हुआ है, जहाँ राष्ट्रवाद अक्सर दिखावे तक सीमित हो गया है, ऐसे समय में बिस्मिल का जीवन यह प्रश्न करता है—क्या हमारी देशभक्ति केवल शब्दों तक सिमट गई है ? क्या हम अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का साहस रखते हैं ? बिस्मिल हमें सिखाते हैं कि सच्चा राष्ट्रप्रेम सत्ता के करीब रहने में नहीं, बल्कि सत्य के पक्ष में खड़े होने में है, फांसी के तख्ते पर चढ़ते समय भी बिस्मिल का आत्मविश्वास और राष्ट्र के प्रति समर्पण अडिग रहा, उन्होंने मृत्यु को भय नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की कीमत माना, यह दृढ़ता आज के युवाओं के लिए सबसे बड़ी सीख है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी कठिन हों, सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए ।
आज आवश्यकता है कि भारत का युवा पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को केवल इतिहास की किताबों में सीमित नही रखे, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन में उतारे, ईमानदारी, साहस, सामाजिक न्याय और राष्ट्र के प्रति निष्ठा—यही बिस्मिल की सच्ची विरासत है, यदि भारत का युवा बिस्मिल के आदर्शों को अपनाए, तो ना केवल एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होगा बल्कि एक ऐसे भारत का उदय होगा जहाँ स्वतंत्रता केवल स्मृति नहीं, बल्कि चरित्र बन जाएगी ।
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साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ






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