जनसुनवाई से जनता ने बनाई दूरी, टूट रहा अधिकारियों का संवाद
जनसुनवाई से जनता ने बनाई दूरी, टूट रहा अधिकारियों का संवाद
-नगर निगम, किसान दिवस, उद्योग व्यापार बंधु की बैठकों की औपचारिकता पर भी सवाल
-थाना दिवस और तहसील दिवस की प्रक्रिया से अब तक अनभिज्ञ है आमजन
मथुरा । वर्ष 2005 में शुरू हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने 20 साल पूरे कर लिए हैं, उत्तर प्रदेश में पहली बार मनरेगा दिवस 15 मई 2007 को लगा था, यह ऐसी योजना थी जिसकी शिकायतों के निस्तारण के लिए तहसील स्तर पर मनरेगा दिवस का आयोजन किया जाता था ।
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मनरेगा दिवस में पहुंचने वाली शिकायतों की संख्या सैकडों में होती थी, लोगों की लम्बी कतार लगती थी, लोगों को विश्वास था कि उनकी शिकायत पर सुनवाई होगी और कार्यवाही भी होगी, वर्तमान समय में लगने वाले जनसुनवाई दिवसों में भी शुरुआत में शिकायतों की संख्या अच्छी खासी होती थी, यहां तक कि नगर निगम के प्रत्येक मंगलवार को लगने वाले "संभव जन शिकायत दिवस" में बडी संख्या में लोग अपनी शिकायत लेकर पहुंचते थे जितनी शिकायतें महीनों में आती हैं वह एक दिन में आ जाती थीं ।
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वहीं किसानों की समस्याओं को सुनने, किसानों से सीधा संवाद करने के लिए जिला स्तर पर लगने वाले किसान दिवस भी अब सिर्फ औपचारिकताएं पूरी करने तक सीमित रह गया है, किसान दिवस में पहुंचने वाले किसान गिने चुने हैं और लगभग हर किसान दिवस में वह किसान पहुंचते हैं, कुछ किसान संगठनों के पदाधिकारियों अधिकारियों तक पहुंच बनाने के लिए किसान दिवस को जरिया बना लिया और आम किसान से इस जनसुनवाई दिवस का कोई ताल्लुक ही नहीं रह गया, मथुरा में किसान दिवस में लगभग नियमित रूप से हंगामा होने लगा, यह औपचारिकता भी औपचारिकता की भेंट चढ़ गई ।
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व्यापार बंधुओं की बैठक में कारोबारी और अधिकारी मिलकर कारोबार और व्यापार से संबंधित शिकायतों और सुझावों पर मंथन करते हैं, जनपद में सक्रिय व्यापार मंडलों के पदाधिकारी लगातार यह शिकायत करते रहे हैं कि यह दिवस एक औपचारिकता भर रह गया है, धीरे धीरे इस दिवस की स्थिति यह हो गई कि कभी व्यापरी और कारोबारी हॉल में समय से पहुंच जाते तो अधिकारी नहीं मिलते और कभी अधिकारी बैठ जाएं तो व्यापारी नहीं पहुंचते, इस बार हुई बैठक में 20 लोगों को बुलाया गया अधिकारी पहुंचे लेकिन व्यापारी पहुंचे मात्र दो ही पहुंचे ।
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किसान दिवस को लेकर भी इस आयोजन में पहुंचने वाले किसान संगठनों से जुडे नेताओं का मोहभंग हो चला है, आम किसान कभी इस जनसुनवाई से जुड ही नहीं पाया था, बिजली विभाग में भी जनसुनवाई हो इसके लिए तमाम प्रयास हुए और फरमान भी जारी हुए लेकिन आम उपभोक्ता की शिकायत यह बनी रही कि उनकी कोई सुंनता ही नहीं है, भाकियू चढूनी के प्रदेश प्रवक्ता रामवीर सिंह तौमर और भाकियू सुनील के प्रदेश प्रवक्ता पवन चतुर्वेदी का कहना है कि जब जनसुनवाई में बात ही न सुनी जाए और अधिकारी कुछ सुनने को तैयार ही नहों तो फिर जाने का औचित्य ही नहीं रह जाता है ।







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