आखिर अवैध निर्माण के लिए दोषी कौन ? क्यों नहीं होती कार्यवाही

 
आखिर अवैध निर्माण के लिए दोषी कौन ? क्यों नहीं होती कार्यवाही
-विकास प्राधिकरणों पर है अवैध निर्माणों पर मोनिटरिंग की जिम्मेदारी, फिर भी जिम्मेदारान नहीं करते कार्यवाही
   देशभर में अवैध निर्माणों की बाढ़ सी आ गई है, इसके लिए आखिर दोषी कौन है ? और दंडित किसे किया जाना चाहिए ?, यह बेहद ही चिंतन का विषय है, इस सम्बंध में कानून का शिकंजा जब कसा जाता है, तब उसमें मानवीय पक्ष का कोई स्थान नहीं होता है, कानून कभी इस बात की समीक्षा नहीं करता कि अवैध निर्माणों पर रोकथाम के लिए विकास प्राधिकरणों पर जिम्मेदारी होने के बावजूद देशभर में अवैध निर्माण होने के लम्बे समय के बाद कार्यवाही को लेकर उसके किसी निर्णय से कितने लोगों के परिवार बेरोजगार होंगे या समय व धन की कितनी बर्बादी होगी ।
   देश के बहुचर्चित मामलों में यदि कानूनी निर्णय के अनुपालन से राष्ट्रीय संसाधनों की क्षति का पूर्वानुमान लगाया जाता तो नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर्स को 28 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ध्वस्त न किया जाता, करोड़ों रूपये की लागत से निर्मित आवासीय प्रोजेक्ट "ट्विन टावर्स" के निर्माण को अवैध बताकर नही गिराया जाता, बताया गया कि यह फैसला नोएडा विकास प्राधिकरण और सुपरटेक के बीच मिलीभगत और इमारत के नियमों के उल्लंघन के कारण लिया गया था, ऐसी ही घटना मेरठ में भी घटी, जब आवासीय क्षेत्र में व्यावसायिक उपयोग को अवैध बताते हुए शास्त्री नगर के सेंट्रल मार्केट में लंबी प्रक्रिया के उपरांत 22 दुकानों के कॉम्प्लेक्स को दिवाली उत्सव पर जमींदोज किया गया। यह बानगी भर है, कानून यदि अपनी पर आए तो क्या कुछ नहीं कर सकता है । 
   विचारणीय बिंदु यही है कि कानून उस समय जागता है, जब बहुत देर हो चुकी होती है, विकास प्राधिकरण व प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से जब करोड़ों रूपये की बहुमंजिला इमारते खड़ी हो जाती हैं और सरकारी जमीनों पर भूमाफियाओं द्वारा बड़ी कालोनियां बना दी जाती हैं, रेलवे की पटरियों के इर्द गिर्द तथा देश के विभिन्न हिस्सों पर बसे अवैध घुसपैठियों पर कानून की नजर ही नहीं पड़ती है, एक ओर सरकार सबका साथ सबका विकास की बात करती है तथा बिना किसी जातीय या धार्मिक भेदभाव के गरीबों को आवास उपलब्ध कराती है, वहीं दूसरी ओर करोड़ों की लागत से बनी हुई बहुमंजिला आवासीय भवनों और व्यवसायिक भवनों के निर्माण के बाद समायोजन नही करके ध्वस्त करने में अपना धन व समय बर्बाद करने के लिए विवश होती है । 
     विचारणीय बिंदु यही है कि पहले तो सरकारी तंत्र अपनी नाक के नीचे अवैध निर्माणों को अपनी मौन सहमति व पूरा संरक्षण देकर पूर्ण कराता है, उसके बाद शिकायत होने और कानूनी शिकंजे के बाद सिर्फ और सिर्फ नोटिस तामील करने की खानापूर्ति करके निर्माणकर्ताओं से धन की उगाही करता है, जब अवैध निर्माण पूर्ण हो जाता है और बस्तियां बस जाती हैं तथा आवासीय क्षेत्रों में बाजार बन जाते हैं, तब सरकार को पता चलता है कि निर्माण अवैध हैं, आखिर पहले चरण पर ही अवैध निर्माण को क्यों नहीं रोका जाता है ? यदि निर्माण पूर्ण हो जाता है, तब उसे गिराने की कवायद करने से पहले जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों तथा जिम्मेदार कर्मचारियों को दंडित क्यों नहीं किया जाता जिनकी शह और संरक्षण में अवैध निर्माण हुआ हो । 
    ऐसे अवैध निर्माणों पर पूर्ण रोकथाम के लिए आवश्यकता यह है कि सरकारें और कानूनविद मिलकर इस समस्या के निदान के लिए कोई सकारात्मक व ठोस हल खोजें व नीति निर्धारित कर उसपर पूरी तरह से अनुपालन करायें क्योंकि अवैध निर्माण को विध्वंस करना बहुत सरल है जबकि निर्माण में काफी लंबा समय, श्रम व धन लगता है, मंथन किया जाये तो अवैध निर्माण विकसित करने के दोषी यही निर्माणकर्ता है तो उससे बड़ी दोषी जिम्मेदारान विभागों में तैनात व कार्यरत के आलाधिकारी हैं जिनकी लापरवाही एवं भ्रष्टाचार के चलते अवैध निर्माण किया जाना संभव हुआ हो, कानून को चाहिए कि अवैध निर्माणकर्ताओं से पहले जिम्मेदारान विभाग के जिम्मेदारानों पर कठोरतम विधिक व विभागीय कार्यवाही की जाये ।

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