भारतीय अभियांत्रिकी परंपरा है सृजन की साक्षी, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता

भारतीय अभियांत्रिकी परंपरा है सृजन की साक्षी, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता

सिंधु घाटी का नगर नियोजन, समकोणीय गलियाँ, कुएँ, स्नानागार हैं पूर्वजों की प्रतिभा का प्रमाण     

आज के औपनिवेशिक युग में सिर्फ गणितीय संरचना तक सीमित रह गया है इंजीनियरिंग का अर्थ

    कभी कभी इतिहास स्वयं को रचने के लिए मनुष्य का सहारा नहीं लेता बल्कि मनुष्य को अपने साधन के रूप में प्रयोग करता है, भारत की सभ्यता ने यही किया है, जब मानव ने मिट्टी को आकार देना सीखा तो भारत ने उससे मंदिर गढ़े, जब जल को नियंत्रित करने की आवश्यकता हुई तो भारत ने नदियों के तट पर सिंचाई की व्यवस्था बनाई, जब पत्थरों से दीवारें बनीं तो भारत ने उन दीवारों में नक्काशी से कविता लिख दी, यह वह भूमि है जहाँ अभियंत्रण सिर्फ तकनीकी कौशल नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन था, यहाँ अभियंता सिर्फ निर्माता नहीं बल्कि भगवान विश्वकर्मा के स्वरूप में सृष्टा माने गए ।


     मोहनजोदड़ों और हड़प्पा की विकसित सभ्यता आज भी हमें यह सिखाती हैं कि स्वच्छता और जल-प्रबंधन सिर्फ शहरी सुविधा नहीं बल्कि सभ्यता की रीढ़ हैं, सिंधु घाटी का नगर नियोजन, समकोणीय गलियाँ, कुएँ, स्नानागार, यह सब हमारे पूर्वज अभियंताओं की प्रतिभा का जीवंत प्रमाण हैं, प्राचीन ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा का उल्लेख उसी गौरव के साथ हुआ है जिस गौरव से कवि वाल्मीकि और ऋषि व्यास का, हर वर्ष हमारी संस्कृति में हम इंजीनियरिंग संस्थानों में विश्वकर्मा पूजन के आयोजन करते आए हैं, भारतीय अभियंत्रण सदैव कला, विज्ञान और आध्यात्म के संगम पर खड़ा रहा है, हमारे मंदिरों की स्थापत्य कला, लोहे के खंभे जो सदियों से जंगरहित खड़े हैं या फिर अजन्ता की गुफाओं में शिल्प-सौंदर्य आज भी दिखता है जिससे साफ जाहिर है कि हमारे अभियंता सिर्फ साधन बनाने वाले नहीं हैं बल्कि जन आत्मा में बसने वाले कलाकार थे ।


    अब समय बदला तो औपनिवेशिक युग आ गया, इंजीनियरिंग का अर्थ केवल गणितीय संरचना तक सीमित कर दिया गया, भारत में अभियंत्रण को अंग्रेजी पाठशालाओं के माध्यम से नए रूप में ढाला गया, किंतु भारतीय मस्तिष्क अपनी जड़ों से कट नहीं सका, स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही एक नए अभियंत्रण युग का आरंभ हुआ, जो आत्मनिर्भरता का प्रतीक था, रेलवे, सिंचाई परियोजनाएँ, बांध, इस्पात संयंत्र, औद्योगिक नगर, यह सब नवभारत की नींव थे, पंचवर्षीय योजनाओं में अभियंताओं का स्थान उतना ही महत्वपूर्ण था जितना किसी कवि का संस्कृति के निर्माण में होता है, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि बड़े बांध आधुनिक भारत के मंदिर हैं, यह कथन भारतीय अभियंताओं के लिए एक आदरांजलि था, आज भारतीय अभियंता दुनिया के प्राय: प्रत्येक देश में कही ना कही महत्वपूर्ण भूमिकाओं में सक्रिय हैं ।


  पहले भारत गुलाम था फिर भी तकनीकी विचार स्वतंत्र थे लेकिन आज राजनीति इंजीनियरिंग के विविध क्षेत्रों सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर, माइनिंग, एयरोनॉटिकल, और अनेक शाखाओं में क्षेत्रीय  विकास के नाम पर हावी दिखती है, भारत में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी लेखन का बड़ा संकट रहा है, ज्ञान यदि भाषा की दीवारों में कैद हो जाए तो वह सीमित हो जाता है, हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीक का लेखन, महत्वपूर्ण है, यह उस भारत का प्रतीक है जो बहुभाषिक होते हुए भी एक विचार में बंधा हुआ है ।
    आज का भारत चंद्रयान, आदित्य, जीआईएस, और स्वदेशी ड्रोन तकनीक के साथ अंतरिक्ष से लेकर पृथ्वी की गहराइयों तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है, यह केवल तकनीकी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ नहीं हैं, यह अभियंत्रण की आत्मा का उत्कर्ष है, "मेक इन इंडिया" और "वोकल फॉर लोकल" जैसे अभियानों में अभियंता अग्रिम पंक्ति के योद्धा हैं, आज के समय में आवश्यकता है कि नई पीढ़ी में अभियंता सिर्फ उपकरणों तक सीमित नही रहें बल्कि समाज की नब्ज को पहचानें, जल व ऊर्जा और कचरे का प्रबंधन सिर्फ योजनाओं का विषय नहीं, जीवन की आवश्यकता है, अभियंत्रण यदि संवेदना से जुड़ जाए तो वह चमत्कार कर सकता है, आज जब विश्व कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालन के युग में प्रवेश कर रहा है  हम आशा करते हैं कि भारत का अभियंता केवल तकनीक का ज्ञाता नहीं, सृजन का साक्षी है और सृजन की गाथा है ।

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