भारत में गरीबी निवारण के उपाय

भारत में गरीबी निवारण के उपाय
   भारत जैसे विकासशील लोकतांत्रिक देश के सामने गरीबी आज भी एक गंभीर और बहुआयामी चुनौती है। विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बावजूद, समाज के एक बड़े वर्ग को आज भी दो वक्त के भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। गरीबी केवल आर्थिक अभाव नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता, अवसरों की कमी और विकास की धीमी रफ्तार का दर्पण भी है। अतः यह समस्या राष्ट्रीय चिंता का विषय है और इसके समाधान के लिए प्रभावी व दीर्घकालिक नीतिगत कदमों की आवश्यकता है।

  1. भारत में गरीबी की स्थिति – क्यों है चिंता का विषय?
  (क) आय असमानता में लगातार वृद्धि : आर्थिक असमानता पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है। देश की कुल संपत्ति का बड़ा हिस्सा कुछ प्रतिशत लोगों के पास केंद्रित हो गया है जबकि निम्नवर्ग की आय स्थिर या बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ी है, इससे सामाजिक असंतोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
  (ख) ग्रामीण-शहरी असमानता : ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, कम आय और सीमित औद्योगिक निवेश गरीबी को और गहरा करते हैं। दूसरी ओर शहरों में भी असंगठित श्रमिक, प्रवासी मजदूर और झुग्गी-झोपड़ी निवासियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है।
   (ग) शिक्षा एवं स्वास्थ्य का अभाव : गरीबी का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह है कि गरीब परिवार शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश नहीं कर पाते। खराब स्वास्थ्य और अशिक्षा बेरोजगारी को जन्म देती है और व्यक्ति गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाता है।
  (घ) महंगाई और सीमित रोजगार अवसर : महंगाई बढ़ने से गरीब परिवारों की आय का बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च हो जाता है। साथ ही, स्वरोजगार और उद्योगों में पर्याप्त अवसर न मिलने से आर्थिक स्थिति सुधर नहीं पाती।
  (ङ) प्राकृतिक आपदाएँ व आर्थिक संकट : बाढ़, सूखा, महामारी आदि गरीब वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। कोविड-19 महामारी ने करोड़ों परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर की, जिसकी भरपाई अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।

  2. भारत में गरीबी के प्रमुख कारण :-
    @बेरोजगारी व अल्प-रोजगार : पर्याप्त और स्थायी रोजगार का अभाव गाँव और शहर—दोनों जगह गरीबी को बढ़ाता है।
     @कृषि पर अत्यधिक निर्भरता : कृषि की आय कम, जोखिम अधिक और बाजार अस्थिर होने से किसान आर्थिक सुरक्षा से वंचित रहते हैं।
     @शिक्षा की निम्न गुणवत्ता : दक्षता की कमी व तकनीकी शिक्षा का अभाव युवाओं को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ देता है।
     @स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी : बीमारियाँ गरीब परिवारों को कर्ज और संकट में डालती हैं।
     @औद्योगिक विकास में क्षेत्रीय असमानता : कुछ ही राज्यों में उद्योग, सूचना प्रद्योगिकी और उत्पादन केंद्रित रहे जबकि पिछड़े राज्य गरीबी से जूझते रहे।
     @भ्रष्टाचार और योजनाओं का कमजोर क्रियान्वयन : योजनाएँ तो बनती हैं, परंतु लाभ वास्तविक पात्र तक समय पर नहीं पहुँच पाता।

   3. गरीबी के सामाजिक और राष्ट्रीय दुष्परिणाम :-
   ★कुपोषण, बाल-मजदूरी और मानव-तस्करी में वृद्धि
   ★शिक्षा का निम्न स्तर और उच्च विद्यालय छोड़ने की दर में वृद्धि
   ★अपराध, नशाखोरी और सामाजिक हिंसा में इजाफा
    ★लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा
    ★आर्थिक विकास की धीमी गति

   इस प्रकार गरीबी न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है बल्कि राष्ट्रीय विकास में बाधक भी है।

   4. गरीबी उन्मूलन के लिए आवश्यक निवारण उपाय :-
   (अ) रोजगार सृजन को प्राथमिकता : 
    @सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, स्टार्टअप, निर्माण क्षेत्र और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देकर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन किया जा सकता है।
    @कौशल विकास कार्यक्रमों को स्थानीय उद्योगों की जरूरतों से जोड़ना जरूरी है।
   (ब) कृषि क्षेत्र का सशक्तिकरण :
   @किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (ऍमसपी ) की गारंटी
   @फसल बीमा का सुदृढ़ क्रियान्वयन
   @आधुनिक तकनीक, सिंचाई व्यवस्था और कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा
   @किसान उत्पादक संगठन (फपीओ) को मजबूत करना

   (स) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास :-
   √सरकारी विद्यालयों में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा
   √औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, पॉलिटेक्निक, डिजिटल स्किल और उद्यमिता प्रशिक्षण पर जोर
    √गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति एवं डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता

    (द) स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार :-
    ●प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत बनाना
    ●सस्ती दवाइयों एवं स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की पहुंच
     ●पोषण योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन (पोषण अभियान, एकीकृत बाल विकास सेवा)

   (इ) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मजबूत बनाना :-
   ◆मनरेगा का विस्तार और समय पर मजदूरी
   ◆वृद्धावस्था, विधवा और विकलांग पेंशन का समय पर वितरण
   ◆शहरी गरीबों के लिए सस्ती आवास योजनाएँ

   (फ) महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण :-
   #स्वयं-सहायता समूह को आसान ऋण
महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, उद्यमिता को बढ़ावा
   #लैंगिक असमानता खत्म कर समाज की आधी आबादी को गरीबी से बाहर लाना

   (ग) ईमानदार शासन और योजनाओं में पारदर्शिता :-
   ★डिजिटल भुगतान और प्रत्यक्ष लाभ    
   ★अंतरण से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण
   ★स्थानीय स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण

   5. निष्कर्ष :-
   भारत में गरीबी केवल आर्थिक कमजोरी नहीं, बल्कि विकास की नीतियों की असमान पहुँच का परिणाम भी है। इसके उन्मूलन के लिए सरकार, समाज और नागरिक—तीनों का संयुक्त प्रयास अत्यंत आवश्यक है। यदि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को मजबूत किया जाए, तो देश न केवल गरीबी को कम कर सकता है, बल्कि “सबका विकास, सबकी समृद्धि” को साकार कर सकता है। 
गरीबी का समाधान लंबी यात्रा अवश्य है, परंतु समन्वित प्रयासों और दूरदर्शी नीतियों के साथ भारत एक समृद्ध, समान और न्यायपूर्ण राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ सकता है।


  साभार : शिखर अधिवक्ता, उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ ।

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