काल भैरव अष्टमी पर विशेष : मदिरा पान करती है यह प्रतिमा

काल भैरव अष्टमी पर विशेष : मदिरा पान करती है यह प्रतिमा
उज्जैन के काल भैरव की है मदिरा पान करने वाली यह विलक्षण प्रतिमा 
स्कंदपुराण में वर्णित है काल भैरव के इस सिद्धिदायी मंदिर का उल्लेख 
     देश में एक प्रतिमा ऐसी भी है जो ना जाने कितने वर्षों से प्रतिदिन मदिरा पान कर रही है और वह भी दिन में एक बार नहीं अनेक बार, भक्त इस प्रतिमा को मदिरा अर्पित करते हैं, प्रतिमा उसका पान करती है, मदिरा पान करने वाली यह विलक्षण प्रतिमा उज्जैन के काल भैरव की हैं ।
   भगवान महाकाल के ज्योर्तिलिंग, हरसिद्धि देवी एवं चिंतामणि गणेश तथा प्रत्येक बारहवें वर्ष आयोजित होने वाले सिंहस्थ के लिये प्रसिद्ध उज्जैन में काल भैरव की यह चमत्कारी एवं अद्भुत प्रतिमा प्रतिष्ठित है, प्रतिमा के मुख से जब पुजारी एक तश्तरी में शराब लगाता है तो यह प्रतिमा मदिरा पी जाती है, वैसे कहा यह जाता है कि इस प्रतिमा का निर्माण ही इस तरह किया गया है कि तरल पदार्थ मुंह के माध्यम से भीतर चला जाए, इस प्रतिमा के चमत्कार देखने को उत्सुक व्यक्ति तथा भक्तगण प्रतिदिन इतनी शराब पिलाते हैं कि सारी मदिरा प्रतिमा में संग्रहित होना संभव नहीं है ।
    काल भैरव की यह प्रतिमा भैरवगढ़ क्षेत्र में है, यह स्थान कापालिकों तथा अघोरपंथियों का साधना स्थल रहा है, वैसे  उज्जैन भी तांत्रिकों की साधना का एक प्रमुख केंद्र रहा है, इसका मुख्य कारण यहां भगवान महाकाल की स्वयंभू एवं प्राकृतिक प्रतिमा होना है, देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर की प्रतिमा ही दक्षिण मुखी है तथा दक्षिण मुखी प्रतिमा का तंत्र साधना में विशेष और महत्वपूर्ण स्थान है, वहीं दूसरा कारण इस स्थान का सिद्धपीठ होना है । 
    शिव पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करने के बाद जब भगवान शिव भगवती सती का शरीर उठाकर ले जा रहे थे, भगवती सती की कोहनी यहां गिर पड़ी थी, भगवती सती के शरीर के अंग जिन स्थानों पर गिरे, उन्हें शक्तिपीठ माना जाता है, उज्जैन भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है, उज्जैन में दुर्गा के तीन प्रमुख एवं प्राचीन मंदिर हैं जो हरसिद्धि, गढ़कालिका एवं नगरकोट की रानी के मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
   स्कंदपुराण में काल भैरव के एक सिद्धिदायी मंदिर का उल्लेख है, मान्यता है कि स्कंदपुराण में वर्णित मंदिर यही है, तांत्रिकों, कापालिकों और अघोरपंथियों द्वारा उज्जैन में साधना एवं उपासना की परंपरा ईसा के पूर्व से रही है, यह नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र रहा हैं, राजा भर्तृहरि की गुफा, सिद्धवट, नगर कोट की रानी तथा अन्य कई स्थान नाथ संप्रदाय से संबंद्ध रहे हैं, इस दृष्टि से काल भैरव की यह विलक्षण प्रतिमा किस काल की है, यह पता लगाना आसान काम नही है।
    काल भैरव की यह प्रतिमा एव मंदिर क्षिप्रा के तट पर है, थोड़ी ही दूर पर श्मशान तथा प्रेतशिला तीर्थ के नाम से पुराणों में वर्णित स्थान भी है, तंत्र साधना में अष्ट भैरवों की उपासना एवं आराधना की जाती है, उज्जैन में इन सभी अष्ट भैरवों के स्थान और मंदिर हैं, कालभैरव के अलावा जिन सात अन्य भैरवों के उज्जैन में मंदिर हैं, उनमें दंडपाणि भैरव, विक्रांत भैरव, महा भैरव, क्षेत्रपाल भैरव, बटुक भैरव, आनंद भैरव तथा गौर भैरव हैं, भैरव भगवान शिव के गण माने गये हैं, देवी उपासना में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान है, काल भैरव अब कपालिकों तथा अघोरपंथियों की उपासना तथा आराधना का केंद्र तो नहीं हैं, वहां आज भी प्रतिमा का चमत्कार देखने एवं मनौती मानने वालों की भीड़ रहती है । 

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